पलायन को रोकने के लिए नहीं बनी ठोस नीति, खेती का रकबा कम होने से पैदा हो रही बेराेजगारी लोहाघाट में राज्य आंदोलनकारियों ने की बैठक, सरकारों पर उठाए सवाल देवभूमि टुडे चंपावत/लोहाघाट। उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों ने राज्य की सत्ता में रहे दलों पर राज्य की मूल अवधारणा से भटकने का आरोप लगाया। उन्होंने पहाड़ की समस्याओं के समाधान के लिए ठोस और प्रभावी नीतियां तैयार करने पर जोर दिया। 2 नवंबर को राज्य आंदोलनकारी एडवोकेट नवीन मुरारी की अध्यक्षता और सुरेंद्र बोहरा के संचालन में हुई बैठक में वक्ताओं ने कहा कि राज्य गठन की अवधारणा को पूरी तरह भुला दिया गया है। विकास की बातें केवल मंचों तक सीमित रह गई हैं। वक्ताओं ने कहा कि उत्तराखंड के पहाड़ों की आजीविका का मुख्य आधार में कभी कृषि व बागवानी का दायरा लगातार सिमट रहा है। गांवों से पलायन और वन्य जीवों आतंक बढ़ने से खेत बंजर पड़ गए हैं।
कहा कि राज्य निर्माण का मुख्य उद्देश्य गांवों को विकास से जोड़ना था, लेकिन सरकारों का ध्यान गांवों की ओर कभी नहीं गया। ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क और संचार सुविधाओं को मजबूत करने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। पिछले 25 वर्षों में पहाड़ का अधिकांश भाग खाली हो चुका है। जल, जंगल और जमीन की सुरक्षा पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा। लोगों ने कहा कि शहीदों के सपनों वाले इस राज्य को सत्ता की पाठशाला बना दिया गया है। सरकारों ने आंदोलनकारियों की मंशा को समझने का कभी प्रयास नहीं किया, जिसके कारण लोग बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। सरकार को रिवर्स माइग्रेशन को बढ़ावा देने के लिए ठोस पहल करनी चाहिए, लेकिन अब तक किसी भी सरकार ने इस दिशा में प्रभावी कदम नहीं उठाया गया। बैठक में राज्य आंदोलनकारी प्रहलाद सिंह मेहता, बृजेश माहरा, भूपेश देव, पूरन उप्रेती, राजू गड़कोटी, भुवन जोशी, राजकिशोर ओली, राम सिंह बोहरा, विजय ढेक, नवीन खर्कवाल, नवीन ओली, कैलाश चिल्कोटी, जोगा सिंह देव, हरीश उप्रेती, अर्जुन सिंह ढेक, सुरेश सिंह ढेक सहित कई प्रमुख आंदोलनकारी मौजूद थे।
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