बातें-बातों में: (विचार)...
चम्पावत के पुरातन मंदिर गोरलदेव का विशाल प्राकृतिक प्रांगण भी गोरलचौड़ के नाम से जाना जाता है
भगवत प्रसाद पाण्डेय
न्याय के लोकदेवता के रूप में प्रतिष्ठित गोरल की पूजा उत्तराखंड में ही नहीं, नेपाल के गांवों में भी आस्था और विश्वास के साथ की जाती है। काली नदी के उस पार का डोटी क्षेत्र सैकड़ों वर्षों तक कुमाऊं के अधीन रहा। लोक श्रुति के अनुसार यहां का कामकाज धौली-धुमाकोट के झालराई नामक मांडलिक राजा देखते थे। लोककथाओं, जागर आदि में इनकी सात रानियां बताई जाती हैं। सबसे छोटी रानी कालींगा जब गर्भवती हुईं, तो अन्य रानियों के मन में सौतिया डाह जाग उठा। उन्हें लगा कि यदि पुत्र हुआ, तो वही राजपाठ पाएगा। सभी ने मिलकर षड्यंत्र रचा। जन्म के समय प्रसव पीड़ा से बेसुध रानी सेनवजात शिशु को छिपाकर वहां पर पत्थर की सिल रख दी गई, परंतु संदूक में बंद कर बहा दिया। वह नवजात देवयोग से बच गया और उसका नाम पड़ा गोरल। आगे चलकर यही राजकुमार अपनी न्यायप्रियता के कारण पूरे कुमाऊं में प्रसिद्ध हुए और कालांतर में लोकदेवता के रूप में जगह-जगह प्रतिष्ठित किए गए। ये तो रहा ऐहितासिक पहलु।
लेकिन इस पूरे प्रकरण पर चर्चा इसलिए कि इन दिनों चम्पावत जिला मुख्यालय में करोड़ों रुपये की लागत से प्रस्तावित 'गोलज्यू कॉरीडोर' की चर्चा है। कुमाऊं के इस प्रसिद्ध लोकदेवता के नाम से बन रही यह परियोजना यदि पूर्ण निष्ठा और ईमानदारी से बनाई जाए, तो गोरल देवता के चरणों में समर्पित नि:संदेह यह एक उत्तम प्रयास होगा। यहां पर ध्यान देने योग्य बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार कई शहरों और स्थानों के नामों को उनके मूल नामों पर वापस लाने के निर्णय ले चुकी है। ऐसे में चंपावत में बन रहे कॉरिडोर को उत्तराखण्ड सरकार के सचिवालय, विभाग और जिला प्रशासन को उसके मूल नाम पर ही बनाये रखना चाहिए।
इस कॉरीडोर को 'गौलज्यू' कहना स्थानीय इतिहास, परंपरा और कुंमय्या बोली—तीनों ही दृष्टियों से उचित नहीं है। यह इसलिये भी प्रासंगिक है, क्योंकि चम्पावत गोरल देव की मूल स्थली है। स्थानीय लोग इन्हें सदियों से 'गोरल' नाम से ही पुकारते आये हैं। इनके मंदिर को 'गोरल का थान' कहा जाता है। चम्पावत के इस पुरातन मंदिर का विशाल प्राकृतिक प्रांगण भी 'गोरलचौड़' नाम से जाना जाता है।
यह बात सत्य है कि बाद में चितई (अल्मोड़ा) और घोड़ाखाल (नैनीताल) में भी गोरल देवता के मंदिर बने, जहां स्थानीय बोली के अनुसार इन्हें 'गोलज्यू' कहा जाने लगा परंतु चम्पावत में मूल नाम गोरल ही रहा है। इसलिए चम्पावत मुख्यालय में बन रहे इस कॉरीडोर का नाम 'गोरल देव कॉरिडोर' ही होना चाहिए।
जिला प्रशासन चम्पावत को स्थानीय इतिहास और परंपरा का सम्मान करते हुए भविष्य के समस्त पत्राचार गोरल देव नाम से ही करने चाहिये। स्थानीय लोग भी यही चाहते हैं कि मूल नाम से कोई छेड़छाड़ न हो। पूर्व शिक्षाविद और साहित्यकार डॉ. कीर्ति बल्लभ शक्टा तथा इन दिनों चम्पावत का इतिहास लिख रहे देवेंद्र ओली भी मानते हैं कि चम्पावत में बन रहे कॉरीडोर को गोरल देव कॉरीडोर कहना ही हर दृष्टि से उचित है।
(लेखक राजस्व विभाग के सेवानिवृत्त CAO और साहित्यकार हैं)
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