25 साल के उत्तराखंड से कितनी पूरी हुई आस, कितनी मिली मायूसी
फिलहाल तो प्रदेश में बन गए खास और आम वर्ग जीडीपी बढ़ी, राज्य का बजट बढ़ा लेकिन ना नौकरी बढ़ी नहीं थमा पलायन
दिनेश चंद्र पांडेय
25 साल का पड़ाव। यह कालखंड उत्तराखंड राज्य के बेहतर निर्माण में कितना कारगर साबित हुआ? इसे लेकर आम लोगों, बुद्धिजीवियों और विभिन्न तबकों के जानकारों से वरिष्ठ पत्रकार दिनेश चंद्र पांडेय ने चर्चा की। और फिर निचोड़ यह निकला कि राज्य में विकास के तमाम नए आयाम स्थापित हुए, लेकिन उसका लाभ ज्यादातर नेताओं, अफसरों, ठेकेदारों, रसूखदारों और पहुंच रखने वालों के ईदगिर्द ही सिमट गया। जबकि खास के उल्ट आम लोग और दूरदराज के इलाके मूलभूत जरूरतों के लिए आज भी एडिय़ा रगड़ रहे हैं। और इसका नतीजा यह कि पलायन का ग्राफ बढ़ा, भ्रष्टाचार रग-रग में फैल रहा। पढ़ाई, कमाई, दवाई की बात हो या खेती-उद्योग की, अधिकांश मामलों में पहाड़ नीचे ही लुढ़कता गया। 25 साल में 10 मुख्यमंत्री मिले, प्रति व्यक्ति आय और जीडीपी में तेज उछाल लेकिन ये तरक्की बमुश्किल 10% से 12% लोगों तक ही सिमटी नजर आती है। बाकी लोग बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, सुविधाओं के टोटे और आर्थिक विपिन्नता की गिरफ्त में है।
ठीक आज ही के दिन यानी 9 नवंबर 2000 को तबके प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में झारखंड, छत्तीसगढ़ के साथ उत्तरांचल नाम से नया राज्य अस्तित्व में आया। उत्तर प्रदेश के 13 जिलों की 85 लाख की आबादी को नया राज्य मिला। दशकों से अलग राज्य के लिए आंदोलित उत्तराखंड क्रांति दल, पृथक राज्य की मांग कर रही भाजपा और राज्य आंदोलनकारियों की मुराद पूरी हो गई। लगा कि नया पहाड़ी राज्य यहां के लोगों की आर्थिक तरक्की खुशहाली का जरिया बनेगा। हर हाथ को काम, खेतीबाड़ी उद्यान को नया आयाम मिलेगा। लेकिन जब भाजपा ने हरियाणा मूल के नित्यानंद स्वामी को अंतरिम सरकार का पहला मुख्यमंत्री बनाया, तो जन मानस में बाहरी मुखिया का संदेश
जाने से राज्य बनने का जश्न फीका सा रहा। यही वजह रही राज्य बनाने के बाद 2002 के चुनाव में भाजपा को इसका फायदा नहीं मिला और राज्य की जगह हिल काउंसिल का राग अलापने वाली कांग्रेस सत्ता में आई और मेरी लाश पर उत्तराखंड बनेगा कहने वाले कांग्रेस के दिग्गज नेता पंडित नारायण दत तिवारी 5 साल मुख्यमंत्री रहे।
एनडी तिवारी का कार्यकाल विकास की दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा और उनके सियासी कद को देखते हुए प्रधानमंत्री वाजपेयी ने प्रदेश को 2003 से 2013
तक विशेष औद्योगिक पैकज दिया। बाद में पीएम मनमोहन सिंह ने इसे 2017 तक बढ़ा दिया। इस पैकेज से उत्तराखंड को 7800 करोड़ का लाभ मिला। एनडी तिवारी ने ही राज्य की लड़ाई में शामिल आंदोलनकारियों को चिन्हित कर उन्हें नौकरी व पेंशन देने का कदम भी उठाया। हालांकि सियासी तिकड़मबाजी से इसका फायदा कई ऐसे लोग भी उठा ले गए, जिनका आंदोलन में योगदान नहीं रहा। जिस दल की सरकार आई उनके तमाम कार्यकर्ताओं को राज्य आंदोलनकारी घोषित करने में प्रशासनिक अमले और विधायकों ने खूब मदद की। यहां तक कि कई विधायक अपनी सरकार में आंदोलनकारी चिन्हित हुए हैं। ये बात दीगर है कि आंदोलन में सक्रिय रहे, हजारों आंदोलनकारी आज भी चिन्हीकरण को लेकर आवाज बुलंद कर रहे है।
भाजपा के मुख्यमंत्री के रूप में मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूरी का कार्यकाल सुशासन और ईमानदारी के लिए हमेशा याद किया जाएगा। उस दौर में सरकारी व्यवस्थाऐं जहां पटरी पर आ गयी थी वहीं भ्रष्टाचार पर काफी हद तक लगाम लगी। तब और अब के तहत यदि 25 सालों का तुलनात्मक खाका खींचा जाए, तो उत्तरांचल का नाम अब उत्तराखंड है। आबादी डेढ़ गुनी यानी 1.20 करोड़ हो गई है। GDP में 26 गुना इजाफा हुआ है। राज्य का बजट 3 हजार करोड़ से 1 लाख करोड़ पहुंच गया है। सड़क, रेल और एयरपोर्ट का इंफ्ऱास्ट्रक्चर बढ़ा है। ऑलवेदर, चारधाम जैसे हाईवे, ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन, जौलीग्रांट एयरपोर्ट बना। धार्मिक पर्यटन में जबरदस्त उछाल आया है। साक्षरता दर अब 88 % है। औद्योगिक विकास में फर्मा, ऑटो ऊंची पायदान में है। बिजली प्रदेश के 98 % हिस्से को जगमगा रही है।
बावजूद इसके चुनौतियां की लंबी फेहरिस्त है। गांवों से पलायन की रफ्तार लगातार बढ़ रही है। वर्ष 2018 में ग्रामीण विकास एवं पलायन रोकथाम आयोग की रिपोर्ट में 1700 से ज्यादा गांव खाली होने का जिक्र है। अब यह संख्या 2000 पहुंच गई है। खनन के लिए नदी नालों को नोचने से आपदा का ग्राफ हर साल ऊंचा हो रहा है।
मैदान की अपेक्षा पहाड़ की शिक्षा, स्वास्थ्य व्यवस्था लचर हो गयी है। 1671 स्कूल बंद हो गए है। जबकि 3573 बंद होने के कगार पर है। जुलाई 2025 तक 608 विशेषज्ञ डॉक्टर, 300 मेडिकल अफसरों के पद खाली थे। इस बीच 80 चिकित्सक पीजी करने वाले और 29 स्पेशलिस्टों की तैनाती हुई है। चिकित्सकों की कमी से कई अस्पताल रैपर सेंटर बने है। चौखुटिया का स्वास्थ्य आंदोलन बानगी भर है। राज्य के 1490 गांव और तोकों में सड़क नहीं होने से बीमार लोगों के लिए डोली ही विकल्प है। जंगली जानवरों के खौफ और फ्री राशन के लॉलीपॉप ने कृषि का रकवा घटा दिया है। यह 31 फीसदी से घटकर 10 % पहुंच गई है।
नशा और अपराध का ग्राफ बढ़ा है। इसी कारण कई जगह खुली शराब की दुकानों का विरोध भी हो रहा है। राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के आंकड़े बताते है कि वर्ष 2024 में 17278 अपराध दर्ज हुए। जिनमें महिलाओं एसे संबंधित अपराध के 3342, हत्या के 56, बलात्कार के 822, अपहरण के 530 मामले आए। साइबर क्राइम के 24 हजार मामलों में 150 करोड़ की ठगी हुई। इनमें अधिकांश मामलों का खुलासा हुआ है। वर्तमान में महिला और साइबर अपराध में कमी आई है, लेकिन हत्या, अपहरण,चोरी बढ़ी है।
25 साल के सरकारी जश्न के मौके पर आयोजित विधानसभा के विशेष सत्र में विधायकों ने इन बातों का जिक्र कम ही किया। प्रतिपक्ष के उप नेता भुवन
कापड़ी ने विधायक निधि में 15 % कमीशन की बात कह कर भ्रष्टाचार के साथ बेलगाम लालफीता शाही के आरोप मढ़े।
पहाड़ मैदान के साथ ही राजधानी गैरसैंण, मूल निवास, जल, जंगल, जमीन और सरकारी मशीनरी के सत्ताधारी पार्टी के एजेंट की तरह काम करने की चर्चा भी खूब होती रही। यदि बात करें राज्य के कर्ज की, तो उसे विरासत में 4500 करोड़ मिला था और अब यह 90 हजार करोड़ हो गया है।
दूसरी तरफ कभी राज्य आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाली मीडिया पर इस दौर में कुछ पत्रकारों पर तलवाचाटी जैसी तोहमत मढ़ी जा रही है और चारणभाटगिरी करने के एवज में वे भी खूब धनपानी बना रहे हैं। जबकि कतिपय आंदोलनकारी सत्ता का गुणगान कर अपनी उस साख पर बट्टा लगा रहे हैं, जिसके लिए वे जाने जाते थे।
आम लोगों का मानना है तिवारी, खंडूरी, उक्रांद नेता विपिन त्रिपाठी, काशीसिंह ऐरी जैसी सोच वाले नेताओं की दरकार है। जो उत्तराखंड को हिमालयी राज्यों में सिरमौर बना सके। लेकिन उत्तराखंड राज्य बनने से ऐसे हालात हो गए, पहले जो नेता ग्राम प्रधान तक का चुनाव नहीं जीत पाते थे, उनमें से कई माननीय बन गए। यूपी में सरकारी अफसर सेवाकाल में दो-तीन पदोन्नति ले पाते थे, वे आज उत्तराखंड में दनादन प्रमोशन पा रहे है। बहरहाल उत्तराखंड राज्य के 25 सालों में विकास तो हुआ, इसमें कोई दो राय नहीं लेकिन विसंगतियां इतनी पैदा हुई है कि, जिसे आम आदमी कहा जाता है, वह उसका लाभ कम ही उठा पा रहा है। ऐसे में राज्य को बेहतर बनाने के लिए सभी को ईमानदारी से सतत प्रयास करने होंगे।
लेखक PTI के जिला प्रभारी के अलावा चंपावत जिले के वंचित राज्य आंदोलनकारी संगठन हैं।
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