कोर्णाक के मंदिर की शैली में बना है मड़ गांव का सूर्य मंदिर
लेकिन न हो सका मंदिर का सौंदर्यीकरण और नहीं गांव तक है सड़क
राज्य आंदोलनकारी दिनेश गुरुरानी ने उठाई सौंदर्यीकरण की आवाज
देवभूमि टुडे
चंपावत/पिथौरागढ़। पिथौरागढ़ जिले के चौबाटी का मड़ गांव। छोटा गांव, उपेक्षित गांव लेकिन खास शैली के मंदिर के लिए विख्यात है। बावजूद इसके न मंदिर के संरक्षण की कवायद हो रही है और नहीं गांव में आधारभूत सुविधाओं को बढ़ाने की। गांव तक पहुंचने के लिए चार किलोमीटर पैदल चलना अब भी मजबूरी है। जाहिर है ऐसे में पर्यटकों का मंदिर तक पहुंचना आसान नहीं है। राज्य आंदोलनकारी सुभाष जोशी के नेतृत्व में ग्रामीणों ने खुद चलने लायक रास्ता बनाया है। अब इस खास शैली के मंदिर के सौंदर्यीकरण की आवाज कुमाऊं मंडल विकास निगम कर्मचारी महासंघ ने भी उठाई है।
महासंघ के अध्यक्ष और उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी दिनेश गुरुरानी का कहना है कि चौबाटी के मडग़ांव का सूर्य मंदिर उड़ीसा के कोर्णाक की शैली का है। सरकार मंदिरमाला कार्यक्रम के तहत मंदिरों को पर्यटक स्थलों से जोड़ रही है, लेकिन इस क्षेत्र की अनदेखी हुई है। इससे पूर्व गुरुरानी ने पूजा अर्चना करने के बाद मंदिर परिसर में एक पौधा धरती मां के नाम के तहत पौधारोपण भी किया। कार्यक्रम में राज्य आंदोलनकारी सुभाष जोशी, गणेश जोशी, बसंत जोशी, केवलानंद जोशी, सामाजिक कार्यकर्ता दीप जोशी, विजय बोरा, नरेंद्र सिंह, विशाल जोशी आदि मौजूद थे। 15 फरवरी को सूर्य पर्व होने पर यहां सुंदरकांड पाठ करने के अलावा रात्रि जागरण भी होगा।
मड़ का पुराना नाम नाघर था, लेकिन इस पुरातन मंदिर के निर्माण के कारण इसका नाम मड़ यानी (देवताओं का स्थल) पड़ा । इस जगह पर ब्राह्मण जाति के परिवार ही रहते हैं। मान्यता है कि यह मंदिर रातोंरात विश्वकर्मा ने बनाया। वहीं कुछ लोग इसे पांडव कालीन भी बताते हैं। मड़ के मंदिर में शिव पार्वती, गणेश, सरस्वती, महाकाली व सूर्य देव की मूर्ति हैं। इसका नमूना व बनावट दक्षिण के मंदिरों व मूर्तियों से मिलती जुलती है । मंदिर की बनावट कोणार्क के सूर्य मंदिर से काफी मेल खाती है। सूर्य देवता की मूर्ति में सात घोड़े सप्ताह के सात दिन के प्रतीक हैं। 24 पहिए सालभर में होने वाले 24 पक्षों और आठ तिलियां आठ प्रहरों की प्रतीक है। इस मंदिर का सौंदर्यीकरण करने के साथ ही इसे सड़क से जोडऩे से धार्मिक पर्यटन बढ़ेगा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी सहारा मिलेगा। वैसे भी यह गांव अनार और सिटरसं प्रजाति के फलों की पट्टी है। सड़क होने से ग्रामीणों को बाजार भाव भी अधिक मिलेगा।