


चंपावत में BJP जिलाध्यक्ष गोविंद सामत के जरिए सहकारी समितियों के कार्मिकों ने CM को भेजा ज्ञापन वैद्यनाथन कमेटी के सुझावों को लागू करने सहित आठ मांगों पर कार्रवाई का आग्रह
देवभूमि टुडे
चंपावत। सहकारिता विभाग की समितियों के सचिव और अन्य कार्मिकों ने राज्य में बहुउददेशीय प्रारंभिक कृषि सहकारी ऋण समिति कर्मचारी केंद्रीयत सेवा नियमावली 2024 को लागू नहीं किए जाने की मांग की है। इसे लेकर कर्मियों के प्रतिनिधिमंडल ने BJP के जिलाध्यक्ष गोविंद सामत के माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजा है।
कहा गया कि प्रदेश की सहकारी समितियों के निबंधक इन समितियों के लोकतांत्रिक स्वरूप की खत्म करने का मन बनाए हुए हैं। इस निर्णय का पैक्स के कैडर सचिव व सहकारी समितियों के कर्मचारी पुरजोर विरोध करते हैं।
इन नियमावली में कई विरोधाभास व खामियां हैं। लिहाजा उक्त नियमावली को लागू किया जाना विधि संगत नहीं होगा। मुख्यमंत्री से हस्तक्षेप कर समितियों के लोकतांत्रिक स्वायत्तशासी स्वरूप को बचाने के लिए इस नियमावली को खारिज करने के लिए जरूरी कार्रवाई करने की मांग की गई है।
कार्मिकों ने दावा किया कि सहकारी समितियों के कैडर सचिव और पैक्स के कर्मचारी सहकारिता आंदोलन के त्रिस्तरीय ढांचे की रीढ़ है। पैक्स अपने-अपने क्षेत्र के किसानों के अंशधन को एकत्र कर न्याय पंचायतों में एक प्रारंभिक कृषि ऋण सहकारी समितियों पैक्स का गठन कर क्षेत्र के लघु कृषकों, BPL परिवारों को अपने अल्प संसाधनों से उनके कृषि कार्यों व अन्य मूलभूत जरूरतों के लिए ऋण उपलब्ध करा रही है। कर्मियों की मांग के मद्देनजर जिलाध्यक्ष सामंत ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को पत्र भेज उचित कार्रवाई का अनुरोध किया है। ज्ञपन में हरीश चंद्र मथेला, सुमित मथेला, पीयूष जोशी, जितेंद्र तड़ागी, कृष्ण चंद्र भट्ट, चंद्रशेखर मौनी, पंकज जोशी, ऋषभ चौडाकोटी आदि के हस्ताक्षर हैं।
ये हैं सचिवों की मांगें: 1.बहुउददेशीय प्रारंभिक कृषि ऋण सहकारी समितियों के केंद्रीयत नियमावली सहकारी समिति अधिनियम 2003 नियमावली 2004 व समिति की आदर्श उपविधियों प्रख्यापित संचालक मंडल के अधिकारों का हनन कर रही है, जो नैसर्गिक न्याय के विरूद्ध है। इस सेवा नियमावली को प्रदेश में लागू न किया जाए।
2.सहकारी समितियां पैक्स अपने प्रबंधकीय व्यय हेतु किसी भी प्रकार की राजकीय सहायता नहीं ले रही है समितियां अपनी वित्तीय स्थिति के अनुसार ही अपने कर्मचारियों को वेतन भत्ते दे रही हैं। 1983 से यहां की समितियों में स्टॉफिंग पैर्टन लागू है। अब नए नियम थोप कर प्रबंध कमेटी के अधिकारों पर हमला किया जा रहा है।
3.सहकारी समितियों एक स्वायातशासी संस्था है जो अपने संसाधनों से अपने सदस्यों की जरूरतों की पूर्ति प्रदेश सरकार की नीति के अनुरूप सहकारी समिति अधिनियम 2003 नियमावली 2004 का पालन करते हुए समितियों का प्रबंध लोकतांत्रिक तरीके से करती है। इन समितियों के स्वरूप को खंडित न किया जाए।
4 सेवा नियमावली के अध्याय 2 में दी गई व्यवस्था के अनुसार समिति संचालक मंडल को पूर्व में अधिनियम, नियमावली व समिति पंजीकृत उपविधियों से प्राप्त अधिकार (कर्मचारिया की भर्ती, नियुक्ति, दंड, वेतन भत्ते, अवकाश, प्रशिक्षण पदोन्नति, सेवा समाप्ति, अनुशासनात्मक कार्यवाही सेवाच्युति तथा अन्य अधिकारों) को समाप्त कर दिया है। जो लोकतांत्रिक प्रबंध व्यवस्था के विरूद्ध है।
5.सहकारी समितियों पैक्स के लोकतांत्रिक स्वरूप में उसकी उपविधियों व निर्वाचित प्रबंध कमेटी के अधिकारों की रक्षा के लिए निबंधक के उपरोक्त परिपत्र फरवरी 2024 को तत्काल निरस्त करते हुए निबंधक को समितियों में बेवजह हस्तक्षेप न करने और सहकारी समिति अधिनियम 2003 की धारा 121 व 22 में प्राप्त अधिकारों का दुरूपयोग न करने हेतु दिशानिर्देश दें।
6.मुख्य कार्यकारी अधिकारी की सेवाओं वेतन भत्ते आदि प्रयोजनो के लिए समितियों के अंशदान द्वारा संचयित कैडर फंड जिला स्तर पर ही गठित हो। अंशधारी समितियों द्वारा संचयी हेतु कैडर फंड को प्रदेश स्तर पर केंद्रीयत किया जाना न्यायोचित नहीं है।
7.प्रारंभिक कृषि ऋण सहकारी समिति कर्मचारी नियमावली के अध्याय 5 में दी गई व्यवस्था में वर्ष दौरान समिति द्वारा अर्जित शुद्ध लाभ के सादृश्य कर्मचारियों को प्रोत्साहन राशि देने का प्रावधान किया गया है, जो कि सहकारी समिति अधिनियम 2003 की धारा 32 (च) व नियमावली 2004 में प्रख्यापित व्यवस्था का अतिक्रमण है और समिति के स्वायत्तशासी स्वरूप को खंडित करेगा।
8.प्रदेश में सहकारिता आंदोलन को और अधिक गतिशील बनाने के लिए वैद्यनाथन कमेटी के सुझावों को लागू किया जाए।



