विचार…ठंड शुरू, गुलदार की दस्तक भी शुरू

ठंड आते ही गुलदार भी मुस्कराये, खतरों को कम करने के लिए वन विभाग PWD, NH, PMGSY के अलावा जिला पंचायत और क्षेत्र पंचायतों को भी निभानी होगी जिम्मेदारी
भगवत प्रसाद पांडेय
चंपावत जिले के पर्वतीय इलाकों में ठंड ने दस्तक दे दी है। जंगलों से होकर गांवों, कस्बों और नगरों की भी थरथराहट बढ़ गई। लेकिन लोगों की ये कंपकपी ठंड से नहीं, बल्कि गुलदारों की दस्तक से है। हर साल की तरह इस बार भी सर्दी के साथ गुलदारों की आमद की खबरें आने लगीं हैं। मतलब गुलदारों का ‘शीतकालीन भ्रमण’ शुरू हो चुका है।
बरसात के बाद जब यहां के सीढ़ीदार खेतों में फसल कट जाती है, तो उसके बाद घास कटाई शुरू हो जाती है। साथ ही जंगलों की घनी झाड़ियां पतझड़ होकर खुद साफ होने लगते हैं। ऐसे में गुलदार कहां छिपें? ऊपर से जंगलों में हिरण, सुअर, सियार जैसे इनके नियमित शिकार भी गांवों, नगरों की ओर निकल पड़ते हैं। नतीजन गुलदारों की नजर पालतू बकरियों, कुत्तों और गायों की आर हो जाती है। कई बार घरों के आसपास खेलते बच्चों और राहगीरों तक इनकी निगाह से नहीं बच पाते हैं।
सब जानते हैं कि सर्दियों की रातें लंबी होती हैं। गुलदार भी धीरे-धीरे, धैर्य से, रात के अंधेरे में अपना शिकार तलाशते हैं। ज्यादा भूखे होने पर ये दिन में भी अपने शिकार ढूंढ कर मार लेते हैं। वर्षा ऋतु में पैदा हुए उनके शावक भी अब कदम से कदम मिलाकर चलते हैं, तो उनकी सुरक्षा के लिए कई बार मादा गुलदार इंसानों से भी भिड़ जाती है। यद्यपि वन विभाग लोगों को सतर्क करता है कि शाम के बाद जंगल की ओर न जाएं, बच्चों को देर तक बाहर न खेलने दें, और पशुओं के गोठ के दरवाजे-खिड़कियां बंद रखें। तथापि सच कहें तो, सतर्कता सिर्फ जंगलायत महकमे को ही नहीं, सड़क और रास्तों की देखभाल करने वाले विभागों को भी रखनी चाहिए। सड़क किनारे उगी ऊंची झाड़ियां, घासें अब गुलदारों को शिकार देखने के अच्छे ‘वॉच टॉवर’ बन जाते हैं। इसलिए ज़रूरत है कि सड़क से जुड़े विभाग PWD, NH, PMGSY के अलावा जिला पंचायत और क्षेत्र पंचायत भी अपने संसाधनों से ग्रामीण मार्गों से झाड़ी कटान का अभियान चलाएं। साथ ही नागरिकों को भी जागरूक होकर अपने घरों के आसपास की घास-झाड़ियां समय-समय पर साफ करनी चाहिए। आख़िर ठंड में जब सबको अपने-अपने घर की गर्माहट चाहिए, तो जंगल के इन मेहमानों को भी पेट भरने का हक तो चाहिए ही। बस इतना ध्यान रहे, उनका ‘लंच, डिनर’ किसी गांव के घर-आंगन से न उठे।
(लेखक साहित्यकार और सेवानिवृत्त राजस्व विभाग के अधिकारी हैं)

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