जंगल बचाने के लिए जाना…क्या है स्याहीदेवी-शीतलाखेत Model

बीते 12 वर्ष से वनाग्नि से सुरक्षित हैं ये आरक्षित वन क्षेत्र
चंपावत वन प्रभाग के 50 सदस्यीय दल ने किया शीतलाखेत का भ्रमण
देवभूमि टुडे
चंपावत। वनाग्नि प्रबंधन के स्याहीदेवी-शीतलाखेत मॉडल के अध्ययन के लिए चंपावत वन प्रभाग से 50 सदस्यों के दल को शीतलाखेत का भ्रमण कराया गया। इसक्षेत्र के जंगल बीते 12 सालों से वनाग्नि से सुरक्षित है। स्याहीदेवी-शीतलाखेत आरक्षित वन क्षेत्र में जनता और वन विभाग के परस्पर सहयोग से वनाग्नि प्रबंधन किया जाता है। इसके सकारात्मक परिणाम मिले हैं।
उप वन क्षेत्राधिकारी हेम चंद्र गहतोड़ी ने बिना पौधरोपण के जंगल विकसित करने की एएनआर पद्धति, वर्षा जल को भू-जल में बदलने में बायोमास की भूमिका, आग को अनियंत्रित होने से रोकने में फायर पट्टी की उपयोगिता की जानकारी दी। चीड़ की पत्तियों के कारण जंगलों में आग नहीं लगती है। अधिकांश मामलों में इंसानी चूक या लापरवाही जंगल की आग की शुरुआत की वजह होती है।
दूसरे सत्र में जंगल के दोस्त समिति के सलाहकार गजेंद्र कुमार पाठक ने पीपीपी (पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन) के जरिए स्याहीदेवी-शीतलाखेत मॉडल की जानकारी दी। बताया गया कि जंगलों की आग का मुख्य कारण प्राकृतिक जल स्रोतों (नौले, धारे, गाढ़, गधेरों) के सूखने, मानव-वन्य जीव संघर्ष में लगातार वृद्धि होने और क्षेत्र के तापमान में वृद्धि है।ने किया। वन क्षेत्राधिकारी हिमालय सिंह टोलिया और कैलाश चंद्र गुणवंत के नेतृत्व में भ्रमण दल में 17 वन कर्मी, 3 वन पंचायतों के 33 सदस्य शामिल थे। चंपावत वन प्रभाग के कर्मियों के अलावा वन पंचायत खुजेठी, रौलमेल और भिंगराड़ा के सरपंच एवं सदस्यों ने हिस्सा लिया।

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