विशेषज्ञ डॉक्टरों का धरना…OPD पर व्यापक असर

चंपावत जिले के पर्वतीय क्षेत्रों में अल्ट्रासाउंड और सीटी स्कैन नहीं हो सके
50 प्रतिशत अतिरिक्त वेतन को देहरादून में प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों के विशेषज्ञ चिकित्सकों ने दिया धरना
देवभूमि टुडे
चंपावत/देहरादून। PMHS (प्रांतीय चिकित्सा एवं स्वास्था सेवा संघ) के आह्वान पर उत्तराखंड के विशेषज्ञ डॉक्टरों का हुजूम 11 अप्रैल को देहरादून स्वास्थ्य महानिदेशक परिसर में उमड़ा था। वेतन विसंगति को दूर करने के लिए डॉक्टर एक दिनी धरने पर थे। विशेषज्ञ डॉक्टरों का आरोप है कि प्रदेश सरकार द्वारा पिछले साल पर्वतीय क्षेत्रों के सरकारी अस्पतालों में सेवा दे रहे विशेषज्ञ डॉक्टरों को 50 प्रतिशत अतिरिक्त वेतन देने का आश्वासन दिया था, लेकिन ये आश्वासन पूरा नहीं हो सका है। एक तरफ एनएचएम से तैनात विशेषज्ञ चिकित्सकों को 4 लाख रुपये का वेतन दिया जा रहा है, जबकि उन्हें आश्वासन दिए जाने के बावजूद सरकार 50 प्रतिशत अतिरिक्त वेतन नहीं दे रही है।
हड़ताल का असर चंपावत जिला अस्पताल और लोहाघाट उप जिला अस्पताल की स्वास्थ्य व्यवस्था पर पड़ा। यहां के विशेषज्ञ चिकित्सक धरने के लिए देहरादून गए थे। इस वजह से विशेषज्ञ चिकित्सकों की तमाम सुविधा नहीं मिल सकी। सर्जरी, अस्थि रोगों का इलाज आदि का खास तौर पर असर पड़ा। एक्सरे, अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन नहीं हो सके। अधिकांश जगह सन्नाटा था। मरीजों की तादात भी काफी कम थी। आज शुक्रवार को महज 93 पर्चियां बनीं। जबकि अन्य दिनों ये संख्या 300 से पार होती है। जिला अस्पताल के प्रमुख चिकित्साधीक्षक डॉ. हीरा सिंह ह्यांकी का कहना है कि विशेषज्ञ चिकित्सकों के धरने पर जाने से ओपीडी सेवाओं पर व्यापक असर पड़ा है। अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन आदि नहीं हो सके। मरीजों की संख्या भी कम रही। विशेषज्ञ डॉक्टरों के एक दिनी धरने का असर 14 अप्रैल तक रहेगा। 14 अप्रैल को आंबेडकर जयंती के बाद से सेवा सुचारू हो सकेगी। डॉ. अजय कुमार, डॉ. प्रदीप सिंह बिष्ट, डॉ. बैंकटेश द्विवेदी, डॉ. मनोज सिंह कुंवर, डॉ. हिमांशु पांडेय, डॉ. यशमोहन सोनी, डॉ. धनंजय पाठक, डॉ. राशी भटनागर, डॉ. लता, डॉ. कर्णिका पंत आदि शामिल थे।
विशेषज्ञ चिकित्सकों की ये हैं प्रमुख मांग:
1.पर्वतीय क्षेत्रों के राजकीय मेडिकल कॉलेज में विशेषज्ञ चिकित्सकों की तरह ही सरकारी अस्पतालों में सेवा दे रहे विशेषज्ञ डॉक्टरों को भी 50 प्रतिशत अतिरिक्त वेतन दिया जाए।
2.सुगम और दुर्गम क्षेत्रों का फिर से निर्धारण किया जाना चाहिए।
3.एसडीएनसीपी (स्पेशल डायनामिक एश्योरड करियर प्रोग्रेशन) में शिथिलीकरण का शासनादेश होने के बावजूद प्रकरण को लटकाया गया है।

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