बेमिसाल है सेनानियों की शौर्यगाथा…संरक्षण जरूरी: ब्लॉक प्रमुख विनीता फर्त्याल

भारत छोड़ो आंदोलन की 82वीं वर्षगांठ पर सम्मानित किए गए सेनानी रामचंद्र चौड़ाकोटी के पुत्र महेश चौड़ाकोटी
जनकवि शूल ने आजादी के दौर की दास्तान को जोशीली कविताओं में पिरोया
आजादी के बाद अब विकास की जंग जीतने के लिए जरूरी है समग्र दृष्टिकोण
देवभूमि टुडे
चंपावत। भारत छोड़ो आंदोलन की 82वीं वर्षगांठ पर चंपावत में स्वतत्रंता संग्राम सेनानियों का स्मरण किया गया। जंग-ए-आजादी के प्रमुख नायकों में से एक पंडित रामचंद्र चौड़ाकोटी के पुत्र और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी उत्तराधिकारी कल्याण समिति के अध्यक्ष महेश चौड़ाकोटी को बाराकोट की ब्लॉक प्रमुख विनीता फर्त्याल ने शॉल ओढ़ाकर सम्मान किया। मुख्य अतिथि बाराकोट की ब्लॉक प्रमुख फर्त्याल ने चंपावत जिले के आजादी के सेनानियों को श्रद्धांजलि देते हुए उनके अविस्मरणीय योगदान की याद दिलाई। उन्होंने अंडमान की जेल (काला पानी) को सेनानियों का उत्पीडऩ स्थल बताया। कहा कि नई पीढ़ी आजादी के स्थानीय सेनानियों को विस्मृत ना करे, इसके लिए सेनानी स्मारकों के निर्माण से लेकर सेनानियों की शौर्यगाथा को विद्यालयी पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। चंपावत जिला पत्रकार संगठन के जिलाध्यक्ष चंद्रबल्लभ ओली ने सभी अतिथियों को स्मृति चिन्ह भेंटकर सम्मानित किया।
जनकवि प्रकाश जोशी शूल के संचालन में हुए कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि जिला सूचना अधिकारी गिरिजाशंकर जोशी ने कहा कि जिन ब्रितानी हुकूमत का कभी सूर्य अस्त नहीं होता था, उन अंग्रेजों को सेनानियों के त्याग और तप से ही देश छोडऩे के लिए मजबूर किया जा सका। चंपावत के पूर्व ब्लॉक प्रमुख और प्रमुख राज्य आंदोलनकारी बहादुर सिंह फर्त्याल ने कहा कि सेनानियों के उत्तराधिकारियों को सम्मान दिए जाने के अलावा सेनानियों से जुड़े प्रतीकों को धरोहर के रूप में संभाला जाना चाहिए।
पंडित रामचंद्र चौड़ाकोटी के बेटे महेश चौड़ाकोटी ने आजादी के दौर के संघर्ष, संकल्प और अदम्य साहस के संस्मरण सुनाए। साथ ही कहा कि आजादी के बाद की लड़ाई विकास की जंग है। इसे साकार करने के लिए सरकार को समग्रता के दृष्टिकोण के साथ आगे बढऩा चाहिए। कहा कि उनके गांव आमखर्क से चार सेनानी हैं, लेकिन अभी भी गांव तक सड़क नहीं पहुंची है। जनकवि शूल ने आजादी के दौर की दास्तान को खूबसूरत और जोशीली कविताओं के जरिए पेश कर भाव विभोर कर दिया। चंपावत जिला पत्रकार संगठन के जिलाध्यक्ष चंद्रबल्लभ ओली, उपाध्यक्ष गिरीश सिंह बिष्ट, विनोद चतुर्वेदी, कोषाध्यक्ष दिनेश भट्ट, चंद्रशेखर जोशी ने कहा कि सेनानियों के बलिदान से मिली आजादी के बाद देश की तरक्की के लिए सरकारों की वैसी ही भावना की जरूरत है। तकनीकी आधार पर स्वतंत्रता सेनानी के दर्जे से वंचित गदर के योद्धा कालू सिंह माहरा को सेनानी बनाने की मांग भी की गई। कार्यक्रम में संजय भट्ट सहित कई लोग शामिल थे।
सेनानी रामचंद्र चौड़ाकोटी ने जेल में भी किया था अनशन
भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 50 रुपये का जुर्माना हुआ
चंपावत। सूखीढांग क्षेत्र के नामी स्वतंत्रता सेनानी पंडित रामचंद्र चौड़ाकोटी में भारत को गुलामी से मुक्त कर आजाद करने की ललक थी। जनवरी 1914 को किसान परिवार में जन्में रामचंद्र को आजादी का इस कदर जुनून था कि उन्होंने जेल के भीतर भी दो बार अनशन कर अंग्रेजों की नाक में दम किया। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 50 रुपये के जुर्माने के अलावा अल्मोड़ा से लेकर बरेली तक जेल की यात्राएं की।
सिर्फ 28 साल में उन्होंने देवीधुरा में बड़ा आंदोलन किया। अंगे्रजों ने चौड़ाकोटी को दो हफ्ते बंद रखने के बाद छोड़ा। आजादी की लड़ाई के दस्तावेज बताते हैं कि भारत छोड़ो आंदोलन में अंग्रेजों के खिलाफ योजनाबद्ध संघर्ष के लिए उन्होंने कांग्रेस मंडल चौड़ाकोट संगठन बना श्यामलाताल में संघर्ष छेड़ा। उन्होंने डांडा, बुड़म आदि दूरदराज के इलाकों में जन-जागृति की। गोरलचौड़ मैदान की अस्थाई जेल में रखने के बाद छह अन्य सेनानियों के साथ उन्हें भी सजा सुनाई गई। अर्थदंड के साथ चौड़ाकोटी को अल्मोड़ा जेल भेजा गया। जेल में भी आंदोलन जारी रखने के चलते अंग्रेजों ने उन्हें बरेली जेल पहुंचा दिया।

सेनानी रामचंद्र चौड़ाकोटी। (फाइल फोटो)
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