
त्रिस्तरीय पंचायती चुनाव में एक वोट की कीमत…कोई पीठ के सहारे आया, तो कोई पढ़ाई व काम छोड़ पहुंचा गांव
देवभूमि टुडे
चंपावत। एक वोट की कीमत क्या होती है, कितनी होती है? सत्ता को गिराने, बचाने या सत्ता में पहुंंचाने में ये 1 वोट कितना मूल्यवान है? इसे कौन नहीं जानता, लेकिन मानते कुछ ही लोग हैं। त्रिस्तरीय पंचायती चुनाव के 28 जुलाई को हुए दूसरे चरण के मतदान में चंपावत के कुछ वोटरों ने तो कमाल ही कर दिया। विपरीत हालातों में भी उनकी voting से लोकतंत्र को ताजगी मिली है, जनतंत्र के जज्बात जीते हैं। ऐसे ही कुछ मतदाओं का ब्योरा यहां पेश किया जा रहा है, जिन्होंने उम्र की बाधा को आड़े नहीं आने दिया। vote की खातिर काम छोड़ दूसरे राज्यों से आए, दूसरे जिलों में पढ़ने वाले कई छात्रों ने भी लोकतंत्र का धर्म निभाया। शारीरिक अक्षमता को पीछे छोड़ लोकतंत्र के पर्व में सहभागी बनने वाले भी थे। और इन सबसे बढ़कर अपनों के जाने का गम भूला कर वोट के धर्म को अदा करने वाले भी थे। जाहिर है उनके इस काम से जन प्रतिनिधियों की जिम्मेदारी और जवाबदेही भी बढ़ेगी।
चंपावत जिले के चारों विकासखंडों के कुल 185550 वोटरों में से 126403 (68.12%) ने वोट डाला। यानी 31% से अधिक ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया। ऐसे में मुश्किल हालात वाले लोगों के वोट का महत्व और बढ़ जाता है।

PRD कर्मी जोशी बने मिसाल… पिता का साया उठने के बाद भी दिया VOTE. चंपावत के PRD कर्मी वर्तमान में तहसील कार्यालय में चालक रमेश जोशी पंचायती चुनाव के लिए नायाब मिसाल बने है। एक दिन पहले (27 जुलाई को) ही उनके पिता शंकर दत्त जोशी का निधन हुआ था। पिता का साया उठने के बावजूद न केवल उन्होंने खुद वोट दिया, बल्कि 19 साल की बेटी कुमकुम और ताई गोविंदी देवी को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित किया। तीनों ने एक साथ वोट डालकर लोकतंत्र में लोक की ताकत और जिम्मेदारी का बड़ा संदेश दिया। रमेश जोशी का कहना है कि पिता के जाने के गम के बावजूद वे वोट देने के लिए गए, तो इसलिए कि इससे गांवों को बेहतर व जिम्मेदार प्रतिनिधि मिल सकेंगे।

नाती की पीठ के आसरे 93 साल की आमा पिरूली देवी न की पूरी हुई वोट की जिद चंपावत ब्लॉक की 93 साल की पिरूली देवी। ना चल पाती हैं ना बोल पाती हैं। उम्र के इस पड़ाव में अन्य शारीरिक दिक्कतें होना भी लाजमी हैं। लेकिन फिर भी वोट देने की उनकी जिद काबिल-ए-तारीफ है। बुजुर्ग पिरुली देवी अपने नाती सचिव की पीठ के आसरे ललुवापानी क्षेत्र के मतदान केंद्र पहुंची। उनके 1 वोट ने लोकतंत्र को ऊंचाई दी है।

दून से VOTE देने गांव पहुंचे BCA के छात्र पारस: नघान गांव के देहरादून में बीसीए की पढ़ाई कर रहे पारस जोशी के लिए पंचायती चुनाव पहली बार वोट देने का अनुभव था, जिसे वे खोना नहीं चाहते थे। लिहाजा स्कूल से छुट्टी ले गांव पहुंचे और वोट डाला। कहते हैं कि वे पहली बार वोट दे रहे हैं। कहते हैं कि उनका यह वोट ना केवल अपने गांव के नुमाइंदों की किस्मत तय करेगा, बल्कि समस्याओं के समाधान के लिए प्रेरित भी करेगा।

VOTE के लिए गुरुग्राम पहुंचे सचिन: गुरुग्राम में काम करने वाले सचिन जोशी के लिए वोट अमूल्य है। इसे छुट्टी लेकर वोट डालने वाले सचिन ने अपने एक वोट से ही साबित नहीं किया, बल्कि अपनी आमा को पीठ पर मतदान केंद्र तक लाकर बताया। कहते हैं कि ये वोट ही है, जिसके जरिए वे प्रत्याशियों और जन प्रतिनिधियों को उनकी जिम्मेदारी का अहसास करा सकते हैं। इससे गांवों की बुनियादी दुश्वारी को दूर करने में मदद जरूर मिलेगी।

दिव्यांग दंपती बृजेश और नीमा ने निभाया VOTE का धर्म: दिव्यांग दंपती बृजेश जोशी और उनकी पत्नी नीमा जोशी ने वोट का धर्म निभाया। कहते हैं वि वे वोट की खातिर चंपावत से नौलापानी गए। अपना धर्म निभाने के बाद अब वे प्रतिनिधियों से उनका कर्म करने की आस लगाए हैं।
