
नशे के खिलाफ जंग में हरेक को बनना होगा योद्धा
नशे से पथभ्रष्ट हो रहे नौजवान
पुरातन धर्म स्थलों, विलक्षण संस्कृति और अदभुत कुदरती खूबसूती वाला उत्तराखंड का चंपावत जिला। लेकिन इन खूबियों के बीच इस जिले में एक खामी नासूर बन रही है, और वह है नशे का अंधेरा। यहां का नौजवान तबका, जो कल अपने परिवार का सहारा बनता और समाज, जिले, राज्य, देश को आगे बढ़ाने में योगदान करता, लेकिन विडंना यह कि इनमें से काफी संख्या में नशे की गिरफ्त में भविष्य को गंवा रहे हैं। आज 19 सितंबर को एक खबर पढ़ी कि पिथौरागढ़ पुलिस ने पहाड़ में हेरोइन की आपूर्तिकर्ता के आरोपी मुख्य तस्कर को पकड़ा। हाल ही में चम्पावत पुलिस ने भी नशीली एमडीएमए की भारी खेप लाते हुए तस्कर को पकड़ा था।
यहां बात सिर्फ चंपावत की होगी। पुलिस अधीक्षक चंपावत ने कुछ समय पहले बताया था कि जनवरी 2025 से अब तक चंपावत पुलिस ने 16.580 किग्रा चरस, 632 ग्राम हेरोइन, 5.789 किग्रा एमडीएमए और 686 ग्राम अफीम बरामद की है। नशे के बाजार में इनकी अनुमानित कीमत करीब 15 करोड़ रुपये आंकी गई। इस दौरान 70 मुकदमों में 180 अभियुक्त गिरफ्तार हुए, लेकिन असली सवाल यह है कि इन कार्रवाइयों के बावजूद नशे की आपूर्ति रूक क्यों नहीं रही? बरेली, पीलीभीत, रुद्रपुर जैसे जिलों से लगातार नशा इस सीमांत क्षेत्र में पहुंच रहा है। पुलिस के लिए नशे का यह संगठित कारोबार एक बड़ी चुनौती बन कर खड़ा है।
चंपावत जिले के कई माता-पिता अपने युवा बेटों की सेना और अन्य सुरक्षा बलों में भर्ती होने का सपना देखते थे। लेकिन नशे ने उनके बच्चों का तन-मन दोनों को खोखला कर दिया। लिखित परीक्षा, शारीरिक और चिकित्सकीय परीक्षण में वे सफल नहीं हो रहे हैं। थकान, कमजोरी और खोखली आँखें उनका भविष्य निगल रही हैं। नशे ने घर-घर में तनाव और डर भर दिया है। कई माता-पिता ने जब बच्चों को जेब खर्च देना बंद किया, तो ये लड़के चोरी करने लगे। यहां तक कि अपने ही माता-पिता से गाली-गलौज और मारपीट तक करने लगे। ऐसे में जो घर कभी प्यार और अपनापन का गढ़ थे, अब तनाव और आंसुओं से भरे हैं। कई परिवार समाज के डर से चुप रहते हैं, पर यह चुप्पी भी उनकी पीड़ा को और गहरा कर रही है। सड़क किनारे, जंगलों या सुनसान जगहों, खंडहर भवनों के आसपास नशे में झूमते, खोये-खोये लड़कों का दृश्य अब आम हो गया है। यह न केवल परिवार के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए शर्मनाक और चिंताजनक है। चोरी, लूट और हिंसा जैसी घटनाएँ भी धीरे-धीरे बढ़ रही हैं।
सब जानते हैं, सब देखते हैं। फिर भी समाज की चुप्पी इस समस्या को और बढ़ा रही है। यह बात सही है कि नशों का सेवन करने वाले नशेडिय़ों की पढ़ाई और काम में अचानक गिरावट आ जाती है। वे घर-परिवार से दूरी बनाकर कमरे में बंद रहना पसंद करते हैं। बार-बार पैसों की मांग या चोरी करना, घरवालों से झगड़ा, मारपीट और गाली-गलौज इनकी आदत हो जाती है। अगर हम नशे में चूर लड़कों को देखें तो उनकी आँखों में लालिमा, चेहरा पीला और थका हुआ नजऱ आता है।
वे गुस्सा, चिड़चिड़ापन और आत्मविश्वास की कमी से जूझते दिखते हैं। उनके कपड़ों और कमरे से अजीब गंध आती है। यदि घर के लोग इन लक्षणों को देखें तो ये छोटे नहीं, बल्कि बड़ी चेतावनी हैं। इन्हें अनदेखा करना खतरे को न्योता देना है। परिवार के मुखिया लोगों के लिए आज समय की मांग है कि बच्चों के साथ संवाद और विश्वास का रिश्ता बनाया जाय। सख्ती की जगह अपनापन और मार्गदर्शन ज्यादा असरकारी है। शिक्षा संस्थानों को केवल पढ़ाई तक सीमित न रहकर जीवन मूल्यों की शिक्षा देनी होगी। खेल, सांस्कृतिक गतिविधियां और परामर्श के सत्र जरूरी हैं। हमारे मोहल्लों और गाँवों में कुछ लोग आगे आकर नशामुक्ति समितियां बना सकते हैं। आसपास में कोई नशे का सौदागर, सप्लायर हो तो गांव समाज को आगे आकर उसका सामाजिक बहिष्कार हो। चुप्पी छोड़कर खुलकर विरोध करना होगा। हमारे पहाड़ में भांग की खेती सिर्फ भांग के दानों की चटनी-सब्जी में उपयोग के लिए नहीं रह गई, बल्कि काले सोने का लालच समाज के लिये कलंक है। इस ओर पुलिस और प्रशासन को कड़ी नजऱ रखने की जरूरत है।
पुलिस-प्रशासन को भी छोटे अपराधियों से आगे बढ़कर बड़े नेटवर्क को तोडऩा जरूरी हो गया है। यह जिला पहाड़ व मैदान से जुड़ा है। नेपाल से भी कई तस्कर नशीले पदार्थ खासकर चरस की तिजारत करते हैं। ऐसे में सीमांत क्षेत्र की संवेदनशीलता को देखते हुए चौकसी और निगरानी और सख्त होना लाजिमी है। राष्ट्रीय नारकोटिक्स समन्वय पोर्टल की मासिक समीक्षाओं में नशे की रोकथाम पर कड़े निर्णय लेने की जरूरत है।
नशे की गिरफ्त में आ चुके युवाओं के लिए पुनर्वास केंद्र और काउंसलिंग की व्यवस्था को सुदृढ़ करना जरूरी हो गया है, ताकि वे नई शुरुआत कर सकें। अब यह लड़ाई केवल पुलिस की नहीं, बल्कि हर नागरिक की भी है। अगर हम चुप रहे तो आने वाली पीढिय़ां नशे के अंधेरे में खो जाएंगी। लेकिन अगर हम जागे, तो बदलाव निश्चित है। आदर्श चंपावत की बात तभी सार्थक होगी, जब पहले चंपावत को नशे से बचाने की बात हो। आज हर घर, हर परिवार और हर मोहल्ला यह संकल्प ले कि हम नशे को अपने घर और समाज में जगह नहीं देंगे। हम बच्चों को संस्कार, संवाद और सही दिशा देंगे। हम तस्करों का समर्थन नहीं, खुलकर विरोध करेंगे। समाज और देश की ताकत वाले हमारे युवा अगर नशे में खोते रहे, तो भविष्य बर्बाद हो जाएगा। लेकिन अगर यहीं संभल गए, तो चंपावत की धरती फिर से गौरव, संस्कार और उम्मीद की मिसाल बन जाएगी।
भगवत प्रसाद पांडेय
(लेखक : साहित्कार और राजस्व विभाग से सेवानिवृत्त मुख्य प्रशासनिक अधिकारी रह चुके हैं।)

