कंधों में शव…15 दिन में दूसरी घटना

चंपावत जिले के रोडविहीन गांवों की त्रासदी
कोटकेंद्री से लेकर तल्लादेश के खटगिरी गांव तक के एक जैसे हैं असुविधाओं के हाल, बुजुर्ग संतोष सिंह के शव को 12 किमी दूर खटगिरी गांव तक डंडे और प्लास्टिक की पन्नी से बांध कर ले जाने की बेबसी
देवभूमि टुडे
चंपावत/तल्लादेश। नेपाल सीमा से लगे तल्लादेश के कई क्षेत्रों में सड़क नहीं होने से बीमार को डोली में लाने-ले जाने के वाकये आम हैं, लेकिन अब ऐसी घटना मृतकों के साथ भी होने लगी है। तल्लादेश के खटगिरी गांव से ऐसा वाकया सामने आया है। सड़क नहीं होने से यहां एक बुजुर्ग के शव को डंडे से लपेटकर ले जाना पड़ा।
चंपावत के एक अस्पताल में इलाज के दौरान खटगिरी के संतोष सिंह (65) की सोमवार को मौत हो गई थी। शव को चंपावत से 31 किमी दूर मंच तक जीप से ले गए, लेकिन सारी दुश्वारी इससे आगे की भी। मंच से 12 किमी दूर खटगिरी गांव तक सड़क नहीं होने से शव को ले जाने के लिए डंडे और बारिश से बचने के लिए प्लास्टिक की पन्नी से बांध 4 घंटे की मशक्कत से शव को घर पहुंचाया जा सका। मृतक संतोष सिंह अपने पीछे पत्नी चंचला देवी और दो बेटे कुंदन सिंह व देवेंद्र सिंह को छोड़ गए हैं।
15 दिन पूर्व 19 अगस्त को भी ऐसा ही वाक्या हुआ था। पूर्णागिरि क्षेत्र के रोडविहीन कोटकेंद्री गांव में जूनियर हाईस्कूल के एक शिक्षक कुंदन सिंह बोहरा की मौत हो गई थी। तब शिक्षक के शव को 3 किमी दूर पोथ के सड़क मार्ग तक कुर्सी के सहारे ले जाया गया। और फिर पोथ से हल्द्वानी तक जीप से पहुंचाया गया।
बात चाहे तल्लादेश के रोडविहीन गांवों की हो या पूर्णागिरि क्षेत्र के सड़क से वंचित इलाकों की, ये उदाहरण क्षेत्र की असुविधाओं की व्यथा को बताता है। पलायन रोकने के लिए उठाए जा रहे सुनहरे दावों के बीच कारूणिक तस्वीर पेश करता है। इन क्षेत्रों में सुविधाओं का किस तरह का सूखा है, इसे बस इस तथ्य से जाना जा सकता है कि इन गांवों में ना रोड है नहीं कोई स्वास्थ्य की सुविधा। ऐसे में पलायन ना हो, तो क्यों ना हो? क्या इस सवाल का जवाब मिलेगा?

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