विचार: दीप पर्व…विकृतियां के मकड़जाल भी नहीं हैं कम

जुआ, नशा, मांसाहार और आतिशबाजी में करोड़ों उड़े
दिनेश चंद्र पांडेय
रविवार 26 अक्टूबर को अमूमन लोग दिवाली पर्व की पअट्आ बिसा चुके होगें, यानी खुमारी सारी उतर गई होगी। आज 27 अक्टूबर से नई ताजगी, उल्लास के साथ देश के कुछ हिस्सों में चुनावी फिजा के बीच छठ पूजा की रंगत बिखर रही होगी, तो अधिकांश हिमालयी क्षेत्र के लोग ठंड के सीजन के इंतजामातों में जुटे जाएंगे। इस बार सर्दी की दस्तक तेज होने के आसार हैं। वैसे बिहार के चुनाव फिलवक्त सियासी पारे का ग्राफ बढ़ाए हुए हैं। इन सबके बीच दीपावली के बदलते स्वरूप और इस पर्व पर बढ रही विकृतियां को लेकर वरिष्ठ पत्रकार दिनेश चंद्र पांडेय के विचार।

23 अक्टूबर को बग्वाली, यम दुत्या यानी भय्या दूज के साथ श्रीराम के वनवास के बाद अयोध्या लौटने की खुशी में रामायण काल से मनाया जा रहा पंच दिवसीय विजय पर्व दीपावली परंपराओं के साथ सौल्लास संपन्न हो गया।
धनतेरस, छोटी दीपावली, महालक्ष्मी पूजन, गोवर्धन पड़वा और भय्या दूज को सनातनियों ने परंपरा के साथ मनाया। हालांकि इस बार महालक्ष्मी पूजन दो दिन 20 और 21 अक्टूबर को हुआ।
यह पर्व अंधरे में उजाले की जीत के साथ ही धनधान्य की देवी मां लक्ष्मी की आराधना को समर्पित है। दियों की जगमग रोशनी से शुरू हुआ यह पर्व समय के अनुरूप जहां नवीन परंपराओं को सहगामी बन रहा है, वहीं आधुनिकता की आड़ में तमाम विकृतियां भी पांव पसार रही है।
हांलाकि जुए जैसी विकृत परंपरा तो अनादि काल से ही इस पर्व की सहगामनी बनी हुई है लेकिन मौजूदा दौर में नशा, नानवेज, पटाखों का बढ़ता चलन पर्यावरण को जबरदस्त क्षति पहुंचा रहा है।
पहले बात करते है वर्षों से चली आ रही सबसे बड़ी बुराई जुआ- सट्टे की। डिजिटल इंडिया फाउंडेशन की रिपोर्ट के अनुसार इस बार दीपावरी पर ट्रेडिशनल जुआ और ऑनलाइन सट्टा करीब 1200 करोड़ का हुआ। जो पिछले साल की तुलना में डेढ़ गुना है। वैसे पूरे साल यह अवैध कारोबार 8 लाख करोड़ का होता है।
अब आते है नशे पर। वैसे तो दीप पर्व आस्था भक्ति का त्यौहार होता है, लेकिन इसमें होली की तरह अब नशाखोरी होने लगी है। खासकर शराब परोसने का चलन बढ़ रहा है। पूरे देश में इस बार 5 से 6 हजार करोड़ की शराब ब्रिकी इस दौरान हुई। तेलंगाना में सबसे ज्यादा एक हजार करोड़, देश की राजधानी दिल्ली में 600 करोड़, उत्तराखंड में 367 करोड़ की शराब बिकी है। ये आंकड़े TASMAC के है।
प्रदूषण की बात करें, तो इस दौरान 20 हजार करोड़ का आतिशबाजी पटाखे का कारोबार हुआ और राजधानी दिल्ली सहित तमाम शहर प्रदूषण की चपेट में रहे। दिल्ली में तो AIQ (Air Index Quality) का स्तर 500 तक पहुचा।
पटाखों से सल्फर ऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड का उत्सर्जन होने से हजारों बीमार लोगों को दिक्कतें हुई। साथ ही बड़ी संख्या में बेजुबान जानवर भी इसकी चपेट में रहे। बिजली की खपत बढने से भी कार्बन का उत्सर्जन बढा। इसके अलावा देशभर में 2 हजार से ज्यादा लोग आतिशबाजी से घायल भी हुए।
अब बात करें, नानवेज की तो पूजा-अर्चना के इस त्यौहार में इसका प्रचलन बढ रहा है। अधिकांश नगरों, कस्बों में मटन, चिकन, अंडे की मांग और और ब्रिकी बढ़ी। देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड में भी दीपावली पर नानवेज का प्रचलन चिंता का सबब है।
पुरी के शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानंदसरस्वती जी महराज कहते हैं कि होली और दिवाली बहुत ही उत्कृष्ट पर्व है।भगवती लक्ष्मी की पूजा दीपावली पर प्रसिद्ध है। विजयपर्व के साथ उर्जा के अनंत स्रोत पानी,प्रकाश, पृथ्वी और पवन को प्रदूषण से मुक्त रहने की भावना से दीपमालिका महोत्सव सनातन वैदिक आदि हिदू मनाते रहे है। धीरे-धीरे इस उत्सव में ऐसी सामग्री का उपयोग हो रहा है, जिससे वातावरण दूषित हो रहा है। लिहाजा पर्व और त्योहार को शास्त्रानुसार ऐसा मनाना चाहिए, जिससे व्यक्ति और पर्यावरण पर बुरा प्रभाव न हो।
बहरहाल पर्व बीत गया, लेकिन जो विकृतियां बढ़ रही है, उस पर चिंतन मनन जरूरी है। दीपावली की सार्थकता अंधेरे में कहीं गुम ना हो जाए। इसकी रोशनी, जगमगाहट और उजाला बने रहे, इसके लिए विकृतियों से दो-दो हाथ करने होंगे।
लेखक लंबे समय तक दैनिक जागरण के ब्यूरो प्रभारी रहे हैं। वर्तमान में PTI के चंपावत जिला प्रभारी हैं।

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