
नेपाल सीमा से लगे तल्लादेश क्षेत्र की मंच-बकोड़ा सड़क का प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना चंपावत खंड ने शुरू किया सर्वे
2012 में मंजूर रोड वन अनापत्ति से अब तक लटकी थी
देवभूमि टुडे
चंपावत/तल्लादेश। नेपाल सीमा से लगे तल्लादेश क्षेत्र की मंच-बकोड़ा सड़क का सर्वें शुरू हो गया। PMGSY (प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना) चंपावत खंड के अधिशासी अभियंता त्रिभुवन नारायण बिष्ट की देखरेख में आज 13 अगस्त से ये सर्वे शुरू हुआ। करीब 15 किलोमीटर लंबी इस रोड में अब एक अन्य गांव मोस्टा को भी जोड़ा जाएगा। डीएम मनीष कुमार ने कल 12 अगस्त को सड़क के सर्वे, DPR और अन्य जरूरी प्रक्रियाओं को जल्द से जल्द पूरा करने के आदेश पीएमजीएसवाई के अधिकारियों को दिए थे।
मंच-बकोड़ा सड़क को वर्ष 2012 में मंजूरी मिली थी, लेकिन वन अनापत्ति नहीं मिलने और अन्य तकनीकी अड़चनों की वजह से रोड का काम ही शुरू नहीं हो पाया था। इस साल जुलाई में इस सड़क की एजेंसी लोक निर्माण विभाग के स्थान पर पीएमजीएसवाई कर दी गई। और अब सड़क का सर्वे शुरू कर दिया गया है। बताया गया है कि सड़क का सर्वे व समरेखन में करीब 3 सप्ताह में पूरा हो सकेगा। अधिशासी अभियंता त्रिभुवन नारायण बिष्ट ने बताया कि सर्वे, समरेखन पूरा होने के बाद DPR और वन अनापत्ति की पत्रावली तैयार की जाएंगी।
सर्वे टीम में AE चंदर भारद्वाज, अपर सहायक अभियंता विशाल उप्रेती, रमेश जोशी शामिल थे। इस मौके पर नव निर्वाचित क्षेत्र पंचायत सदस्य मयंक बोहरा, मंच के ग्राम प्रधान अनिल महर, सामाजिक कार्यकर्ता दीपेश शर्मा, विजय नाथ सिंह, हरीश बोहरा, सुंदर सिंह सहित कई लोग मौजूद थे।
मंच-बकोड़ा सड़क से जुडऩे वाले 17 गांव:
पनतौला, खुलकना, ग्वानी, मरथपला, स्यूतौला, बसेड़ी, खटगरी, सूना गांव, मटकांडा, बकरौला, डांडा, बकोड़ा, मथार, अकरी, मोष्टी, बांस और मोस्टा।
आरक्षित जंगल बना था अड़चन:
चंपावत। 12 किमी लंबी मंच-बकोड़ा सड़क 2012 में मंजूर हुई थी, लेकिन कटिंग 13 साल बाद भी शुरू नहीं हो सकी है। कम आबादी वाले इन गांवों के लिए सड़क बनने में हो रही देरी की वजह घना आरक्षित जंगल था। लोनिवि ने कई बार वन भूमि की आपत्तियों को दूर करने के लिए पत्रावली वन विभाग को भेजी, लेकिन हरी झंडी नहीं मिल सकी। इस साल जुलाई में इस रोड को पीएमजीएसवाई में शामिल कर लिया गया है।
सड़क नहीं होने के नुकसान:
1.विकास में पिछड़ापन।
2.जूनियर हाईस्कूल से आगे की पढ़ाई के लिए 12 किमी दूर मंच आने की मजबूरी।
3.स्वास्थ्य केंद्र नहीं, इलाज के लिए डोली के सहारे मंच और फिर चंपावत जिला अस्पताल लाना बेबसी।
4.बकोड़ा तक पहुंचने वाले सामान की लागत 30 से 70 प्रतिशत ज्यादा हो जाती है।

