गुरु हो तो ऐसा…91 साल के अवधेश सिंह जैसा

47 साल बाद चंपावत पहुंचे तो पुराने साथियों और छात्रों ने हाथोंहाथ लिया, नागरिक अभिनंदन हुआ, पुराने यादे साझा हुई, उत्तर प्रदेश के बलिया के रहने वाले हैं शिक्षक अवधेश सिंह, 1973 से 1978 तक चंपावत जीआईसी में गुरु के रूप में छोड़ी थी अदभुत छाप
देवभूमि टुडे
चंपावत। 20वीं सदी का 8वां दशक। चंपावत का GIC नया-नया ही बना था। मैदानी क्षेत्र के एक शिक्षक इस कदर अपने काम से प्रेम करते थे कि जाड़ों की छुट्टी में भी घर न जाकर छात्र-छात्राओं को पढ़ाते थे। एक ऐसे गुरु जो अपने शिष्यों के भविष्य को ज्ञान की ज्योति से रोशन करते थे। अब पूरे 47 साल बाद ऐसे आदर्श गुरु अपनी उसी कर्मस्थली में पहुंचे, तो तबके शिक्षक साथियों और पुराने शिष्यों और क्षेत्र के अन्य लोगों ने आत्मीयता और अपनेपन से उनको हाथोंहाथ लिया।
ऐसे आदर्श शिक्षक हैं अवधेश सिंह। 91 साल की उम्र में भी पूरी तरह सेहतमंद। 91 की उम्र से वे भले ही बुजुर्ग दिखते हो, लेकिन शारीरिक स्फूर्ति, याददाश्त और जोश से किसी नौजवान से कम नहीं। उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के अवधेश सिंह 1973 से 1978 तक जीआईसी में तत्कालीन प्रधानाचार्य बलवंत सिंह कोरंगा के सानिध्य में अंग्रेजी प्रवक्ता थे। लेकिन हिंदी, संस्कृत और संगीत शिक्षा में उनकी गजब की पकड़ थी। 20 जुलाई को चंपावत पहुंचे शिक्षक सिंह का उनके पुराने सहयोगियों ने शिवा रेजिडेंसी में अभिनंदन किया। मुख्य अतिथि उत्तराखंड वन एवं पर्यावरण सलाहकार समिति के उपाध्यक्ष श्याम नारायण पांडेय और अन्य लोगों ने शॉल ओढ़ाकर सार्वजनिक रूप से सम्मान किया गया। कुशलक्षेम के साथ ही पुरानी यादें सांझा की गई। राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक डॉ. भुवन चंद्र जोशी के संचालन में वक्ताओं ने शिक्षण ही नहीं गुरु अवधेश की बहुमुखी प्रतिभा, तमाम खूबियों के कई संस्मरण, उनके योगदान एवं गुरु-शिष्य परंपरा के तमाम पहलुओं पर सिलसिलेवार तरीके से चर्चा की। वक्ताओं ने कहा कि विलक्षण प्रतिभा के धनी अवधेश मास्साब पढ़ाई-लिखाई ही नहीं तबले पर उनकी थाप और स्थानीय कलाकारों को प्रोत्साहित करने के लिए भी वे किसी उस्ताद से कम नहीं थे।
पुराने साथियों से मिल गुरु अवधेश पुरानी यादों में खोए। उस दौर के साथियों, शिष्यों और अन्य लोगों की याद को ताजा किया। अभिवादन के लिए सबका आभार जताया। कहा कि भले ही वे 47 साल बाद यहां आए हैं, लेकिन चंपावत की यादें हमेशा उनके साथ हैं। आयोजनकर्ता सेवानिवृत्त बैक प्रबंधक मुन्ना गिरी गोस्वामी ने कहा कि उनके योगदान को कभी विस्मृत नहीं किया जा सकता है। सहयोगी और रूम पार्टनर रहे नाथू राम राय और उमाकांत राय ने कहा कि उनकी प्ररेणा से वह पढ़ाने के साथ ही अपनी पढ़ाई भी जारी रख सके और परास्नातक की पढाई भी पूरी की। इस मौके पर सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य बंशीधर फुलारा, डॉ. तिलक राज जोशी, डॉ. डीएन तिवारी, इंद्र सिंह बोहरा, एसबीआई के सेवानिवृत्त अधिकारी जनार्दन चिल्कोटी, एडवोकेट शंकर दत्त पांडेय, व्यापार संघ के जिला मंत्री कमल राय, रमेश पांडेय, धरम सिंह अधिकारी, वरिष्ठ पत्रकार दिनेश चंद्र पांडेय आदि ने भी पुरानी यादों का पिटारा खोला। इस मौके पर सेवानिवृत्त शिक्षक रमेश चंद्र पांडेय, पूर्व प्रधानाचार्या चंपा जोशी, डॉ. कीर्ति बल्लभ सक्टा, चतुर सिंह चौधरी, पत्रकार प्रह्लाद नेगी, कुलदीप राय, एडवोकेट सुधीर साह, डॉ. श्याम सिंह कार्की, सुरेश जोशी, दिलीप मेहता, मिथिलेश कुमार सहित कई लोग मौजूद थे।

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