डरावनी तस्वीर: लोहावती का जल पीने लायक तो दूर, स्पर्श करने लायक भी नहीं…पहाड़ से जुड़े पदयात्रियों का दावा

पाटन नाला दूषित गधेरे में तब्दील
समय रहते कदम न उठाए तो विकराल संकट से जूझेंगे इन नदियों पर आश्रित क्षेत्र
स्थानीय नदियों के अध्ययन के लिए पदयात्रा का आगाज
देवभूमि टुडे
चंपावत/लोहाघाट। लोहाघाट और आसपास की नदियां कभी सदानीरा और साफ पानी से लवरेज होती थी, लेकिन अब इन नदियों की तस्वीर भयावह ही नहीं डराने वाली हैं। ये नदियां सिर्फ मैली ही नहीं हैं, बुरी तरह प्रदूषित हैं। इनका पानी पीना कितना सुरक्षित और सेहतमंद है? नदियों की इस कदर गंदगी के लिए कौन जिम्मेदार है्? इन सबकी पड़ताल की जानी चाहिए, साथ ही समय रहते जरूरी कदम उठाए जाने चाहिए। अन्यथा इन नदियों पर आश्रित क्षेत्र पानी के विकराल संकट से जूझेंगे। ये चेतावनी है सामाजिक कार्यकर्ता देवेंद्र ओली के नेतृत्व में पहाड़ संस्था के लिए नदियों की हालत को जानने के लिए 26 मई को पदयात्रा करने वाले दल की।
पहाड़ की आबोहवा, नदी सहित विभिन्न पहाड़ी मसलों पर संजीदगी से अध्ययन करने वाली उत्तराखंड की प्रमुख संस्था पहाड़ की ओर से अस्कोट-आराकोट यात्रा की 50वीं वर्षगांठ पर 26 मई से लोहावती नदी से स्थानीय स्तर पर पदयात्रा का आगाज किया गया। यात्रा की शुरुआत पाटन और बिशुंग से होकर गुरजने वाली नदियों के संगम से हुई। पदयात्री शिक्षक राजेंद्र गहतोड़ी, राजेंद्र पुनेठा, नवीन राय आदि का साफ कहना है कि कभी छोटी नदी के रूप में बहने वाला पाटन गधेरा अब दूषित नाले में परिवर्तित हो गया है। जबकि बिशुंग से आने वाले गधेरे का पानी अभी भी काफी हद तक साफ है। संगम से ठीक 500 मीटर नीचे आने पर रोडवेज बस स्टेशन से ठीक नीचे एक प्रदूषित नाला लोहावती में मिलता है जो कि अपने साथ अनेक विषैले प्लास्टिक के थैले, बोतल और अन्य कचरे को लोहावती में मिलाता है। प्राचीन ऋषेश्वर मंदिर के समीप जल का प्रवाह बेहद धीमा है और जल प्रदूषित। प्राचीन समय में इस नदी के पानी से शिवजी का अभिषेक किया जाता था, लेकिन वर्तमान में यह जल पीने लायक तो दूर स्पर्श करने लायक भी नहीं है। मुख्य यात्रा पद्मश्री पुरस्कार प्राप्त इतिहासकार डॉ. शेखर पाठक के नेतृत्व में इस साल 18 अक्तूबर से लोहावती के उद्गम से काली नदी संगम तक होगी।

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