रघुराजपुर ने कला व शिल्प से कैसे बनाई खास पहचान… बता रही हैं ब्लॉक प्रमुख विनीता फरत्याल

उत्तराखंड के नौ ब्लॉक प्रमुखों ने शैक्षिक भ्रमण कर जानी ओडि़शा के गांवों की खूबियां
पहाड़ के पारंपरिक परिधान और संस्कृति से उडिय़ा लोगों को रूबरू भी कराया
देवभूमि टुडे
चंपावत/पुरी। उत्तराखंड के नौ ब्लॉक प्रमुख देश के पूर्वी राज्य ओडि़सा की ग्रामीण खूबियों से रूबरू हुए। पंचायतीराज विभाग की ओर से कराए गए शैक्षिक भ्रमण में इन प्रतिनिधियों को वहां की पंचायती व्यवस्था की खूबियां ही नहीं वहां की कला और संस्कृति से भी परिचित होने का अवसर मिला। भगवान जगन्नाथ के धाम पुरी जिले की रघुराजपुर ग्राम पंचायत की कला और संस्कृति को करीब से देखा। साथ ही यहां के प्रतिनिधियों ने उत्तराखंड के पारंपरिक परिधान घाघरा व पिछौड़ा को उडिय़ा लोगों तक पहुंचाया। इसके अलावा पहाड़ की संस्कृति, परंपराओं व पर्यटन स्थलों से भी तस्वीरों और अन्य जरिए से जानकारी दी।
ब्लॉक प्रमुख संगठन की प्रदेश उपाध्यक्ष और बाराकोट की प्रमुख विनीता फरत्याल ने बताया कि रघुराजपुर ग्राम पंचायत की कलाकृतियां न केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत और लोगों को आत्मनिर्भर कर रही है, बल्कि इससे इस गांव की पहचान देश और दुनिया तक हो रही है। ये कला गांव में आजीविका सृजन का सबसे बड़ा जरिया है। कला के कारण राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित इस गांव की सरकार पर निर्भरता भी कम है। प्रमुखों के दल ने ग्राम पंचायत रघुराजपुर के अलावा जगन्नाथ पुरी धाम, भुवनेश्वर के लिंगराज मंदिर, धौलीपुरी मंदिर और बुद्ध मंदिर के दर्शन किए।
इस दल में ब्लॉक प्रमुख संगठन की प्रदेश उपाध्यक्ष और बाराकोट की प्रमुख विनीता फरत्याल, मां वाराही धाम से पहचान रखने वाले पाटी की प्रमुख सुमनलता, हवालबाग की बबीता भाकुनी, चौखुटिया की किरन बिष्ट, बेतालघाट की आनंदी बधानी, रामगढ़़ की ब्लॉक प्रमुख पुष्पा नेगी, भीमताल के डॉ. हरीश बिष्ट, खटीमा के रणजीत सिंह नामधारी और काशीपुर के प्रमुख अर्जुन कश्यप शामिल थे।
कला के लिए दुनियाभर में मशहूर है रघुराजपुर गांव:
ओडि़शा के पुरी की पहचान भगवान जगन्नाथ धाम से है। इसी जिले की एक छोटी सी ग्राम पंचायत है रघुराजपुर। महज 190 परिवार और करीब 824 की आबादी। लेकिन इस छोटे से गांव की एक ऐसी खूबी है, जो इसे देश ही नहीं दुनियाभर में पहचान दिलाती है। वह है यहां की कला और शिल्प की समृद्धता। रघुराजपुर गांव कला और संस्कृति का जीवंत संग्रहालय है, जहां लोग पीढ़ी दर पीढ़ी इन कला रूपों को आगे बढ़ाते रहे हैं। विरासत हस्तशिल्प ग्राम रघुराजपुर खूबसूरत पट्टचित्रों के लिए मशहूर है। राजधानी भुवनेश्वर से 52 किलोमीटर दूर का ये गांवं पट्टचित्र कला, ताल चित्रा (ताड़ के पत्ते की नक्काशी), पत्थर की मूर्तिकला, गोटीपुआ अद्र्धशास्त्रीय नृत्य, ओड़ीसा शास्त्रीय नृत्य सहित विविध कलात्मक परंपराओं की श्रृंखला के लिए जाना जाता है।

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