… क्यों रो रही छात्राएं, क्यों मची है इस स्कूल में चीत्कार… चंपावत के रमक जीआईसी में रोने, चीखने के साथ कक्षाओं से भाग रहीं

नवंंबर के सात दिन में 39 छात्राएं हुईं बेहोश
अभिभावक इसे दैवीय प्रकोप, तो शिक्षा विभाग बता रहा मास हिस्टीरिया
सीईओ के स्कूल के मुआयने के बाद सावज़्जनिक हुआ मामला
स्कूल में स्वास्थ्य विभाग की टीम के जरिए इलाज और काउसंलिंग की गई
चंपावत। जिला मुख्यालय से 93 किमी दूर का रमक जीआईसी पिछले महीने से सुर्खियों में है। नवंबर के अंतिम सप्ताह से रोजाना यहां की आठ से दस छात्राएं सामूहिक रूप से रोने, चीखने के साथ कक्षाओं से भागने का मंजर सामने आ रहा है। छात्राएं ऐसा किस कारण कर रही है, पता नहीं। लेकिन अभिभावक इसे दैवीय प्रकोप बता रहे हैं। साथ ही घटना को सार्वजनिक करने से बच रहे हैं। वहीं शिक्षा विभाग इसे मास हिस्टीरिया बता रहा है। घटना की जानकारी मुख्य शिक्षाधिकारी जितेंद्र सक्सेना के रमक जीआईसी के बाद पहली दिसंबर को सार्वजनिक हुई।


पाटी ब्लॉक के रमक जीआईसी में 82 छात्राएं और 69 छात्र हैं। स्कूल प्रशासन के मुताबिक नवंबर के आखिरी सप्ताह से छठीं से इंटर तक की कई छात्राएं एकाएक सिर घूमना, सिर दर्द होने की शिकायत के बाद रोने, चिल्लाने और भाग जाती। रोज हाफ टाइम के बाद पांच से सात छात्राओं को इस तरह की शिकायत होती रही। करीब 39 छात्राएं इसकी चपेट में आईं। खास बात यह रही कि हर दिन नई छात्राएं इस गिरफ्त में आई। स्कूल प्रशासन ने घटना होने पर अभिभावकों की बैठक बुलाने के साथ ही मामले की विभागीय उच्चाधिकारियों को जानकारी दी। प्रधानाचार्य एसपी गंगवार ने बताया कि पाटी ब्लॉक की स्वास्थ्य विभाग की टीम बुलाकर छात्राओं का इलाज कराया गया। पाटी की प्रभारी चिकित्साधिकारी गुरसरण कौर ने बताया कि देवीधुरा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से डॉ. ज्योति भट्ट के नेतृत्व में भेजी गई टीम ने 45 से अधिक छात्राओं का चिकित्सकीय परीक्षण किया। परीक्षण और परामर्श के बाद इस तरह की घटनाएं कम होने की बात सामने आई है।
दूसरी तरफ अभिभावक छात्राओं के इस रवैये को दैवीय प्रकोप बता रहे हैं। अभिभावकों ने इसके लिए पूजा अर्चना से लेकर देव डांगरों की गद्दी लगवाई। दावा किया गया है कि इसके बाद से अब स्थिति में सुधार हुआ है। पिछले दो दिन से अब ऐसी कोई वारदात नहीं हो रही है। वहीं क्षेत्र के लोगों का कहना है कि लधिया घाटी के दो और स्कूलों में बीते दो माह में भी ऐसी घटनाएं हुई हैं।
कोट
ये कहना है सीईओ जितेंद्र सक्सेना का:
रमक जीआईसी में नवंबर के अंतिम सप्ताह में 39 छात्राओं में मास हिस्टीरिया के दौरे पड़े हैं। स्कूल में छात्राओं को समझाने और इलाज कराने के अलावा अभिभावकों से भी मनोचिकित्सकों के परीक्षण कराने की सलाह दी गई है। अभिभावक पूजा अर्चना कराएं लेकिन चिकित्सकीय परामर्श जरूर लें।
ये कहते हैं सीएमओ डॉ. केके अग्रवाल:
रमक जीआईसी में छात्राओं में हिस्टीरिया की शिकायत मिली। इसके लिए स्वास्थ्य विभाग की टीम ने स्कूल में काउंसलिंग की है।
क्या होता है मास हिस्टीरिया:
हिस्टीरिया आमतौर पर मनोविकार या मनोवैज्ञानिक समस्या है। इसमें कई बार किसी एक व्यक्ति की असामान्य हरकत की साथ के अन्य लोग नकल करते हैं। इसमें व्यक्ति भीतर ही भीतर घुट रहा होता है और अपना दर्द किसी को बता नहीं पाता। पहाड़ में ऐसे मामलों में ज्यादातर देव डांगर और झाडफ़ूंक का सहारा लिया जाता है। ऐसे मरीज दूसरे को झूमते देखते हैं, तो वे भी उसकी नकल करने लगते हैं। मोटे तौर पर इसे ही मास हिस्टीरिया कहते हैं। ये समस्या ज्यादातर कम पढ़ी लिखी या मन की बात को न कह पाने की वजह से सामने आती है।
हिस्टीरिया के लक्षण:
पेट या सिर दर्द, बलों को नोंचना, हाथ पांव पटकना, इधर उधर भागना, रोना, चिल्लाना, गुस्सा करना, उदास रहना, थोड़ी देर के लिए बेहोश होकर अकड़ जाना, भूख व नींद में कमी आना।
हिस्टीरिया का इलाज:
मनोचिकित्सक को दिखाया जाए, काउंसलिंग के साथ उस परिवार को जागरूक किया जाए, हिप्नोथेरेपी के जरिए आंतरिक मन में ध्यान केंद्रित कर मन में छिपे तरीकों को स्वयं के जीवन में परिवतज़्न लाने और नियंत्रण के लिए उपयोग किया जाए।

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