बगवाल की हुंकार इस बार 31 अगस्त को, 27 अगस्त से 10 सितंबर तक चलेगा देवीधुरा का बगवाली मेला

चंपावत। मां बाराही धाम देवीधुरा की प्रसिद्ध बगवाल 31 अगस्त को खोलीखांण के मैदान में खेली जाएगी। वैसे बगवाल का मेला इससे चार दिन पहले 27 अगस्त से शुरू होकर 10 सितंबर तक चलेगा। देवीधुरा के मां बाराही धाम परिसर में मंदिर समिति के अध्यक्ष मोहन सिंह बिष्ट की अध्यक्षता और महामंत्री रोशन सिंह लमगडिय़ा के संचालन में पांच जुलाई को कार्यक्रम की रूपरेखा तय की गई। 15 दिन तक चलने वाले मेले में धर्म से लेकर संस्कृति और पंरपराओं का समागम होगा। बगवाल मेले में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और बाबा कल्याण दास से आने का अनुरोध किया जाएगा। 2022 की बगवाल में मुख्यमंत्री धामी मुख्य अतिथि थे।
तैयारी बैठक में मंदिर समिति के पूर्व अध्यक्ष खीम सिंह लमगडिय़ा, उपाध्यक्ष रमेश सिंह राणा, कोषाध्यक्ष दीपक चम्याल, पंडित कीर्ति बल्लभ जोशी, हयात सिंह बिष्ट, राजेंद्र बिष्ट, वीरेंद्र सिंह लमगडिय़ा, अमित लमगडिय़ा, जगदीश सिंगवाल, दिनेश चम्याल, लक्ष्मीदत्त जोशी, ईश्वर सिंह बिष्ट, रमेश राम, थानाध्यक्ष देवनाथ गोस्वामी, चंदन सिंह बिष्ट, शिवदत्त पुजारी, दीपक पुजारी, कृष्णानंद पुजारी, किशन सिंह के अलावा चार खाम सात थोक के प्रतिनिधि मौजूद थे।
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यूं शुरू हुई बगवाल
चारों खाम (चम्याल, गहरवाल, लमगडिय़ा और वालिग) सहित कुल सात थोकों के योद्घा आषाढ़ी कौतिक यानी रक्षाबंधन के दिन पूजा-अर्चना के बाद फल-फूलों से बगवाल खेलते हैं। बगवाल चारं खाम (गहरवाल, चम्याल, वालिग और लमगडिय़ा) के अलावा सात थोकों के बीच खेली जाती है। एक दशक पूर्व तक बगवाल को पत्थरों से खेला जाता था। इसलिए इसे पत्थरयुद्ध भी कहा जाता था। लेकिन अदालत के निर्देश के बाद बगवाल फल और फूलों से खेली जाने लगी। बताते हैं कि कभी यहां इंसान की बलि दी जाती थी। लेकिन जब चम्याल खाम की एक वृद्धा के एकमात्र पौत्र की बलि के लिए बारी आई, तो वंशनाश के भय से बुजुर्ग महिला ने मां बाराही की तपस्या की। देवी मां के प्रसन्न होने के बाद बगवाल की यह परंपरा शुरू हुई। तभी से बगवाल का सिलसिला चल रहा है।

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